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क्या है स्लीपिंग पैरालिसिस - What is Sleeping Paralysis

जानिए आखिर क्या है यह सपनों का आना:

सपनों का आना एक आम बात है। हम अक्सर सोते वक़्त कोई सपना देखते हैं और नींद खुलते ही उसे भूल जाते हैं। कई बार कोई सपना हमें बार-बार भी आता है। आमतौर हम अपनी दिनचर्या में जिन चीजों से होकर गुजरते हैं या जिसके बारे में हर वक़्त सोचते रहते हैं, सपनों में अक्सर उन्हीं चीजों का रूपांतरित दृश्य देखने को मिलता है। ऐसी स्थिति में हो सकता है असली चेहरे नज़र ना आयें लेकिन घटनाओं पर कोई असर नहीं पड़ता। सपने कई प्रकार के होते हैं और हर सपने का कुछ ना कुछ अर्थ होता है। कई बार हम किसी पहाड़ से नीचे गिर रहे होते हैं, कभी कोई विशेष जानवर हमारे सपनों में बार-बार आता है, कभी हम आसमान में उड़ रहे होते हैं आदि। इन सब के अलावा सपने का एक प्रकार और है जिसे सबसे खतरनाक माना जाता है। जिसमें आप चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते। इसे स्लीपिंग पैरालिसिस या नींद के लकवे के नाम से जाना जाता है।

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क्या है स्लीपिंग पैरालिसिस-

स्लीपिंग पैरालिसिस दरअसल एक ऐसी अवस्था है जिसमें नींद खुलने के बाद भी आप हिल-डुल नहीं पाते और आपको ऐसा महसूस होता है कि आपका शरीर लकवाग्रस्त हो गया है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें आप सोने और जागने के बीच में फंसे होते हैं। आपका दिमाग जाग तो रहा होता है लेकिन चीजों के प्रति प्रतिक्रिया नहीं दे पाता। यह समस्या नार्कोलेप्सी या निद्रा रोग से पीड़ित लोगों में ज्यादा देखने को मिलती है।

स्लीपिंग पैरालिसिस कुछ समय के लिए आपको परेशान जरूर कर सकता है पर यह जानलेवा कतई नहीं है। दिमाग और शरीर के असंतुलन से उत्पन्न हुयी इस अवस्था का असर कुछ सेकंड्स के लेकर कुछ मिनट्स तक ही रहता है।

यूँ तो यह कोई गंभीर परेशानी नहीं है पर कई बार इसका कारण कोई मनोवैज्ञानिक समास्या हो सकती है। आमतौर पर दो स्थितियों में ऐसी शिकायत होने खतरा रहता है। पहली हिप्नेगॉजिक या प्रीडॉर्मिटल जिसमें आप सोए हुए होते हैं और दूसरी हिप्नोपॉटिक यानी पोस्टडॉर्मिटल जब आप जाग रहे होते हैं

स्लीपिंग पैरालिसिस के लक्षण-

1) सांस लेने में तकलीफ होना।

2) डर लगना।

3) काल्पनिक चीजों का नज़र आना।

4) हाथ-पैर ना हिला पाना।

5) घबराहट होना।

स्लीपिंग पैरालिसिस के कारण-

1) नींद पूरी ना होना।  

2) बाइपोलर डिसऑर्डर।

3) नार्कोलेप्सी या निद्रा रोग।

4) पीठ से टिककर सोना।

5) छाती पर हाथ रखकर सोना।

6) चिंता और तनाव।

7) मानसिक बीमारी की दवाईयां।

8) अन्य स्लीपिंग डिसऑर्डर्स।

9) जीवनशैली में बदलाव।

10) अल्कोहल का उपयोग।

बचाव के उपाय-

1) बदलती लाइफस्टाइल के चलते हमारा अधिकतर समय मोबाइल और लैपटॉप पर ही गुज़रता है। लेकिन इन गैजेट्स के अत्याधिक उपयोग से तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्याएँ हो सकती है। जो आगे चलकर स्लीपिंग पैरालिसिस का कारण भी बन सकती हैं। इसलिए सोने से पहले मोबाइल आदि का इस्तेमाल ना करें।

2) पूरी नींद अवश्य लें। गहरी और आरामदायक नींद लेने से आप नींद के लकवे की परेशानी से निजात पा सकते हैं। इसके साथ आप रात को सोने से पहले हल्का संगीत भी सुन सकते हैं।

3) व्यायाम करें। नियमित व्यायाम करने से आपकी मासपेशियाँ अधिक सक्रिय रहती हैं। रोज सुबह उठकर 10-15 मिनट ध्यान लगाने का प्रयास करें। ऐसा करने से आप अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण कर पायेंगे और लकवे के दौरान होने वाली विचित्र घटनाओं से प्रभावित नहीं होंगे।

4) सोने की पोजीशन में बदलाव करें। पीठ के बल ना सोयें। सोते समय करवट बदलने की आदत डालें। खुद को यह समझाने का प्रयास करें कि यह महज एक कल्पना है जो कि जल्द ही खत्म हो जाएगी। धीरे-धीरे आप यह चेतना विकसित कर सकते हैं।

5)  सोने से पहले कैफीन का सेवन ना करें। शराब, चाय, कॉफ़ी आदि का भी सेवन कम से कम करें।

यदि बार-बार आप इस समस्या का शिकार हो रहे हैं तो बेहतर है कि आप मेडिकल सहायता लें एवं किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाएँ।

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