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जब तक पैड्स नहीं थे तब महिलाएं मासिक धर्म के लिए क्या इस्तेमाल करती थी

आज के वक्त में मासिक धर्म होने पर महिलाएं पैड्स, टेंपॉन्स या फिर मेंसुरल कप का इस्तेमाल करती हैं लेकिन भारत जैसे देश में अब भी कई ऐसे गांव हैं जहां महिलाएं सैनेट्री नैप्किन खरीदने के पैसे न होने के कारण पुराने तरीकों का इस्तेमाल करती हैं. हालांकि, जब पैड्स, टेंपॉन्स और मेंसुरल कप जैसी चीजों का इजात नहीं हुआ था उस वक्त भी महिलाएं अपना मासिक धर्म रोकने के लिए लकड़ी, रेत, काई, और घास जैसी चीज़ों का इस्तेमाल किया करती थीं.

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यहां आपको बता दें कि सबसे पहले बेन फ्रैंकलिन ने डिस्पोजेबल सेनेट्री पैड्स का अविष्कार किया था लेकिन इन सैनेट्री पैड्स का इस्तेमाल पीरियड्स में नहीं बल्कि युद्ध के दौरान घायलों के शरीर से बहने वाले खून को रोकने के लिए किया जाता था. जसिके बाद व्यवसायिक रूप से महिलाओं के लिए डिस्पोजेबल पैड्स का इजात 1888 में Johnson & Johnson ने द्वारा किया गया था. उस वक्त ये पैड्स काफी सस्ते दाम में मिल जाते थे.

तो चलिए बिना आपका ज्यादा वक्त लिए आपको बताते हैं कि, सैनेट्री पैड्स के अस्तित्व में आने से पहले महिलाएं किस तरह से अपने मासिक धर्म को रोकती थीं.

1. पपायरस- इजिप्ट की महिलाएं पहले मासिक धर्म के दौरान पपायरस का प्रयोग किया करती थीं. आपको बता दें, पपायरस (Papayrus) एक प्रकार का पेपर होता था जिसका प्रयोग लिखने के लिए किया जाता था. पीरियड्स के दौरान महिलाएं इसे भिगोकर प्रयोग करती थीं.

2. मॉस (Moss)- हिंदी में मॉस के काई कहते हैं. सैनेट्री नेप्किन के इजात से पहले पहले कई महिलाएं काई इकट्ठा करके इसे एक कपड़े में लपेट कर इस्तेमाल करती थीं. उस वक्त इसे एक अच्छा आइडिया माना जाता था लेकिन काई में बहुत से परिजीवी भी होते हैं, जो इंसान को फायदा तो नहीं पहुंचाते.

3. रेत- आपको पढ़ने में शायद अजीब लग रहा हो लेकिन यह सच है कि महिलाएं रेत का इस्तेमाल करती थीं. दरअसल, चीन में महिलाएं ब्लीडिंग से बचने के लिए एक कपड़े में रेत भरकर उसे कस कर बांध लेती थीं और जब रेत गिली हो जाती थी तो उसे बदलकर वो कपड़े को सुखा कर दोबारा इसी प्रकार से इस्तेमाल में लाया करती थीं.

4. घास- अगर आप कभी बड़ी घास की झाड़ियों के आस पास गए हैं तो आपने उनसे होने वाली चुभन महसूस की होगी लेकिन अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में महिलाएं पीरियड्स के दौरान ब्लीडिंग से बचने के लिए घास को पैड के रूप में इस्तेमाल किया करती थीं.

5. सेनेट्री बेल्ट: यह सेनेट्री पैड्स का सबसे पहुराना रूप कहा जाता है. डायपर की तरह दिखने वाले इस पैड में इलास्टिक बेल्ट लगी होती थी जिसमें कॉटन पैड को फिक्स किया जाता था. इसे पहली बार 18वीं शताबदी के आसपास बनाया गया था और इसका प्रयोग 1970 के दशक तक किया गया. उसके बाद बेल्ट के बिना भी सेनेट्री पैड को इस्तेमाल करने के तरीके खोजे गए.

6. बैंडेज- पहले विश्व युद्ध के वक्त नर्सों द्वारा बैंडेज का इस्तेमाल किया गया था. फ्रांस में घायल हुए सैनिकों के रक्त को रोकने के लिए बैंडेज का प्रयोग किया जाता था. जिसके बाद नर्सों द्वारा इसे पीरियड्स के दौरान होने वाली ब्लीडिंग को रोकने के लिए भी किया गया था.

7. पुराने कपड़े- आज भी भारत के कई गांवों और छोटे शहरों में ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो सेनेट्री पैड्स का प्रयोग नहीं करतीं हैं. ऐसे में महिलाएं कॉटन के कपड़ों को फाड़ कर पीरियड्स में पैड की तरह इस्तेमाल करती हैं. जिनके गीले होने पर वह उसे धोकर फिर से इस्तेमाल करती हैं. वैसे तो यह आरामदायक नहीं होता लेकिन रेत और बालू या फिर घास के प्रयोग से काफी बेहतर है. इस तरीके का इस्तेमाल पहले भी होता था और आज भी होता है.

8. जानवरों की खाल- देश और विदेश में कई ऐसी जगहें हैं जहां पर अधिक ठंड पड़ती है और इस कारण वहां की महिलाएं पशुओं की खाल को पैड की तरह इस्तेमाल में लाया करती थीं क्योंकि बर्फीली जगह पर उनके पास कोई और उपाय नहीं था.

9. अब भी कई जगह महिलाएं नहीं करती पैड्स का प्रयोग- भारत में आज भी ऐसी कई जगह हैं जहां पैड्स का प्रचलन नहीं है. खासकर आदिवासी इलाकों में तो पैड्स का बिलकुल भी प्रचलन नहीं है. इसका एक कारण यह भी है कि आज भी पीरियड्स को लेकर भारतीय समाज में खुलकर बात नहीं होती है. भारतीय गांव में तो आज भी पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है. जब तक महिलाएं ठीक नहीं होती तब तक उन्हें घर में अछूत की तरह रहना पड़ता है और उन्हें पानी भी नहीं छूने दिया जाता है. उन्हें नीचे अलग से सोने के लिए कहा जाता है.

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