भारत में ऐसी कई महिलाएं हैं जो अपनी सेहत पर ध्यान नहीं देती और इस वजह से गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाती हैं. दरअसल, देश में गरीब और मिडल क्लास लोगों की संख्या अधिक है और इस वजह से गरीब और मिडल क्लास फैमिली की महिलाएं हमेशा सेहत से जुड़ी छोटी मोटी समस्याओं पर ध्यान नहीं देती. जिस कारण समय पर बीमारी का पता नहीं चल पाता और वो एक गंभीर बीमारी का शिकार हो जाती हैं.
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हमेशा अपने परिवार को सबसे आगे रखने वाली महिलाएं ही खुद की दिक्कतों को इग्नोर करती रहती हैं. तो चलिए आज के हमारे इस लेख में हम आपको उन कारणों के बारे में बताने वाले हैं जिनको नजरअंदाज करने की वजह से अधिकतर महिलाएं गंभीर बीमारी का शिकार हो जाती हैं.
- अक्सर ही आपने देखा होगा कि फैमिली हिस्ट्री के कारण कई पीढ़ियां एक उम्र के बाद उस बीमारी का शिकार हो जाती हैं. इस वजह से अधिकतर महिलाएं भी बीमार होती हैं. दरअसल, कई महिलाएं अपनी फैमिली डिजीज की हिस्ट्री पर ध्यान नहीं देतीं लेकिन उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उनके मम्मी-पापा, दाद-दादी या नाना-नानी में से किसी को 50 की उम्र से पहले डायबिटीज, कैंसर, हायपरटेंशन, हार्ट डिसीज या किडनी संबंधी समस्या तो नहीं थी. यदि इनमें से किसी मेडिकल प्रोबल्म की हिस्ट्री आपके घर में रही है तो आपको नियमित रूप से डॉक्टर स् मिलकर उनके द्वारा सुझाए गए टेस्ट, फिजिकल एग्जामिनेशन करवाते रहना चाहिए. ऐसा करने से समय रहते समस्या का पता चल जाता है और बीमारी का इलाज जल्दी और आसान हो जाता है.
- आज के वक्त में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले बेहद तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. इस वजह से महिलाओं के लिए जरूरी है कि वो स्त्री रोग विशेषज्ञों से स्तनों की नियमित जांच कराती रहें. आप चाहें तो स्त्री रोग विशेषज्ञ से सीख भी सकती हैं. सेल्फ एग्जामिनेशन से ब्रेस्ट में किसी तरह की गांठ का पता चल जाता है. इसके अलावा 40 से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए एक या दो साल में एक बार मैमोग्राम टेस्ट करवाना जरूरी है.
वैसे मुख्य रूप से ब्रेस्ट में गांठ होना ही ब्रेस्ट कैंसर का आम लक्षण माना जाता है लेकिन जिस तरह हर गांठ कैंसर नहीं होती, उसी तरह स्तन कैंसर के और भी कई लक्षण होते हैं. इसके अन्य लक्षणों में निप्पल से तरल का रिसाव होना और कांख में सूजन का नजर आना शामिल है.
- वैसे तो कई रिसर्च के मुताबिक ये सामने आ चुका है कि महिलाओं में हार्ट से संबंधित बीमारी का खतरा पुरुषों के मुकाबले कम होता है लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय महिलाओं में हार्ट डिसीज भी मृत्यु का एक बड़ा कारण है. विजुअलाइजिंग द एक्सटेंट ऑफ हार्ट डिसीज इन इंडियन वुमेन नाम के एक सर्वे में पाया गया है कि 20 से 40 उम्र की महिलाओं में हार्ट डिसीज के मामलों में 10 से 15 फीसदी की वृद्धि हुई है. सर्वे में देश के 600 सेहत विशेषज्ञों से मिली जानकारी के अनुसाल हाल के कुछ वर्षों में ही महिला हृदय रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है.
चिकित्सकों के अनुसार महिलाओं में हार्ट डिसीड के बढ़े खतरे का कारण जीवनशैली में हुआ बदलवा और खान-पान में लापरवाही है. जिस वजह से शरीर के नेगेटिव हार्मोन में बदलाव आता है जो इस्ट्रोजन के असर को निष्क्रिय कर देता है. महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण में छाती में तेज दर्द न होकर गर्दन, जबड़े, कंधे, कमर या फिर पेट में दर्द होना है. इसके अलावा सांस लेने में समस्या, दोनों या फिर एक हाथ में दर्द, जी मिचलाना, पसीना, आदि भी इसके लक्षण में शामिल हैं.
महिलाएं किसी भी तरह के रूटीन टेस्ट या फिर मेडिकल कंसल्टेशन को जरूरी नहीं समझतीं. डॉक्टर्स के मुताबिक युवावस्था से ही महिलाओं को पैप स्मीयर्स टेस्ट कराते रहने चाहिएं और जो शादी शुदा महिलाएं हैं उन्हें यौन सक्रियता के शुरुआती 3 सालों में टेस्ट करना चाहिए और फिर हर 2 साल में जांच कराते रहना चाहिए.
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