दीपावली के त्योहार खत्म होने के बाद आती है छठ पूजा। छठ पूजा भी हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार है। छठ पूजा का पर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है। इस साल छठ पूजा के त्योहार का विधान 31 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। छठ पर्व के दौरान 4 दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की जाती है। आपको बता दें, छठ पूजा की शुरूआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन की जाती है और छठ पूजा का समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को प्रातःकाल किया जाता है। क्या आप जानते हैं छठ पूजा को कई नामों जैसे छठ मैय्या, डाला छठ, छठी, छठ माई पूजा, छठ, सूर्य षष्ठी पूजा और छठी माई से भी जाना जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी छठ पूजा के कई अलग-अलग स्वरूप भी हैं। इन स्वरूपों को चैती छठ, ललही छठ और ऊब छठ के रूप में जाना जाता है।
छठ पूजा को मुख्यतौर पर उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में खासतौर पर मनाया जाता है। आज हम आपको बताएंगे रहे हैं छठ पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, छठ पूजा कैसे की जाती है और छठ पूजा से जुड़ी क्या मान्यताएं हैं।
छठ पर्व विधान और पूजा की तारीख
31 अक्टूबर- नहाय खाय
1 नवंबर- खरना
2 नवंबर- सांध्यकालीन अर्घ्य
3 नवंबर- प्रातःकालीन अर्घ्य
छठ पूजा का शुभ मुहूर्त-
छठ पूजा सूर्योदय का समय- 06:33
छठ पूजा सूर्यास्त का समय - 17:35
छठ पूजा षष्ठी तिथि आरंभ का समय- 2 नवंबर रात 12:51
छठ पूजा षष्ठी तिथि समापन का समय- 3 नवंबर रात 01:31
क्यों कहते हैं छठ पूजा-
छठ पूजा का नाम इसीलिए छठ पड़ा क्योंकि ये पर्व दीपावली के छठे दिन बाद मनाया जाता है। बेशक, छठ पूजा का विधान छठ पूजा से 2 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। इस साल छठ पूजा का विधान 31 अक्टूबर से आरंभ हो रहा है और छठ पूजा 2 नवंबर को की जाएगी, छठ पूजा का समापन 3 नवंबर को प्रातःकाल प्रसाद वितरण के बाद किया जाएगा।
कैसे की जाती है छठ पूजा-
छठ पूजा का आरंभ छठ पूजा विधान के साथ होता है जिसे नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। नहाय खाय का आरंभ कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को होता है। 31 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ छठ पूजा का विधान आरंभ होगा। नहाय खाय के दिन भक्त और व्रती सुबह-सेवेरे नहा-धोकर, साफ और नए कपड़े पहनकर पूजा करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं। छठ पूजा में चावल, गुड से अधिक व्यंजन बनाएं जाते हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन के विधान को खरना के नाम से जाना जाता है। खरना में व्रती दिनभर निर्जल रहकर सायंकाल में गुड़ से बनी खीर, या चावल से बने व्यंजन से उपवास खोलते हैं।
छठ पूजा का सबसे अधिक महत्व सांध्यकालीन अर्घ्य के दिन यानि षष्ठी के दिन होता है। इस दिन खासतौर पर पानी के बीचोबीच छठी माई की पूजा की जाती है। छठ पूजा के लिए खासतौर पर गुड़ और चावल के व्यंजन और विशेषतौर पर ठेकुआ बनाया जाता है। इन सभी व्यंजनों को एक टोकरी में फूलमाला और फलों के साथ सजाकर टोकरी की पूजा की जाती है। छठ पूजा पर गन्ने की विशेष पूजा होती है। व्रती डूबते सूर्य को जल देने घाट या नदी में जाते हैं और सूर्यास्त को अर्घ्य देते हुए टोकरी में रखे व्यंजनों से छठी माई और सूर्यदेव को भोग लगाते है।
छठ पूजा का समापन प्रातःकालीन अर्घ्य के साथ सप्तमी के दिन होता है। इस दिन भक्तजन और व्रती सांध्यकालीन अर्घ्य पूजा की तरह ही प्रातःकालीन अर्घ्य पूजा करते हैं। लेकिन इसमें उगते सूर्य को जल दिया जाता है। इसके बाद सभी को प्रसाद वितरित किया जाता है और छठ पूजा संपन्न होती है।
छठ पूजा के अलग-अलग स्वरूप-
चैती छठ – चैती छठ को खासमतौर पर वे लोग मनाते हैं जो किसी बीमारी से निजात पाना चाहते हैं या फिर संतान की कामना करते हैं। चैती छठ को चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है। चैती छठ में भी सूर्यदेव की पूजा की जाती है और ये 4 दिन का पर्व होता है।
ललही छठ – ललही छठ को अलग-अलग नामों जैसे हरछठ या हलषष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। इस छठ की खास बात ये है कि ललही छठ मनाने वाले लोग पूजा सांयकाल के समय करते हैं। भादो महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन ललही छठ मनाई जाती है। आमतौर पर ललही छठ को पुत्र या संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए मनाया जाता है।
ऊब छठ – भाद्र पद महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन ऊब छठ मनाई जाती हैं। चैती और ललही छठ से अलग ऊब छठ को विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए मनाती हैं। कुआंरी लड़कियां अच्छे पति की कामना के लिए ऊब छठ का व्रत रखती हैं।
छठ पूजा से जुड़ी मान्यताएं-
चैत्र शुक्ल और कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ पूजा की जाती है। छठ पूजा में छठी माई की खासतौर पर पूजा करते हुए सूर्य देव की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि छठी मैय्या को प्रसन्न करना है तो सूर्यदेव की खास आराधना करें। मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव को छठी मैय्या की बहन कहा जाता है। यदि छठी माई भक्तों की पूजा से प्रसन्न होती है तो उनकी सभी इच्छाएं पूरी करती हैं। क्या आप जानते हैं छठ पूजा का त्योहार मनाने के दौरान एक रिवाज़ है कि व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के अन्य सदस्यों को खाना परोसा जाता है।
छठ पूजा से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि छठ पूजा की शुरूआत महाभारत के समय से हुई है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण सूर्यदेव के परम भक्त थे। कुंती पुत्र कर्ण घंटों तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को जल दिया करते थे। यहीं से छठ पूजा की परंपरा आरंभ हुई है।