मोदी सरकार ने बीते शुक्रवार अपना अंतरिम बजट पेश किया है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बजट पेश करने के दौरान कई नए वादों की सौगात दी। विपक्ष को झटका तो तब लगा जब मोदी सरकार ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए चुनाव से ठीक पहले मिडिल क्लास के लोगों को टैक्स से राहत देकर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया। इसके अलावा बजट में किसानों को प्रति वर्ष 6000 रुपये देने का भी एलान किया गया। हालाँकि इतनी कम राशि के चलते एक बार फिर विपक्ष को वाद-विवाद करने का मौका मिल गया।
मोदी सरकार के पाँच साल लगभग खत्म होने को हैं। इस दौरान देश में कई बड़े आर्थिक बदलाव देखने को मिले। जिसमें नोटबंदी, जीएसटी, बैंकरप्सी कोड जैसे महत्वपूर्ण फैसले शामिल हैं। आइये जानते हैं अर्थव्यवस्था की इस दौड़ में दोनों सरकारों का कार्यकाल कैसा रहा और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में किसने जीत हासिल की।
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नौकरियाँ-
मोदी सरकार ने स्किल इंडिया प्रोग्राम के तहत नयी नौकरियाँ उत्पन्न करने का एक सार्थक प्रयास अवश्य किया लेकिन आंकड़ों की माने तो इस वित्तीय वर्ष को अब तक की सबसे बड़ी रोजगार मंदी माना जा रहा है। मोदी सरकार नयी नौकरियाँ प्रदान करने में नाकाम रही है। वर्ष 2017 और 2018 के बीच बेरोजगारी की रेट बहुत रफ़्तार से बड़ी है। अगर औद्योगिक उत्पादन की बात करें तो नोटबंदी होने के कारण इस पर काफी असर पड़ा है। यूपीए सरकार के दौरान जो 3 से 3.5 प्रतिशत था वो अब घटकर 2 से 2.5 प्रतिशत हो गया है। यूपीए सरकार के दौरान जहाँ 10 लाख लोगों को रोजगार मिलता था वह आंकड़ा गिरकर अब 2 से 3 लाख तक पहुँच गया है।
ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट-
यदि जीडीपी की बात करें तो आंकड़ों के अनुसार एनडीए सरकार के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था यूपीए सरकार की अपेक्षा 0.6 फीसदी रफ़्तार से बढ़ रही है। हालाँकि मनमोहन सिंह ने भी अपने कार्यकाल के दौरान वर्ष 2010-11 में 10 फीसदी तक के अंक को पार किया था, जो कि अगले ही वित्तीय वर्ष में गिरकर 8.5 फीसदी तक पहुँच गया थी।
राजकोषीय घाटा-
मोदी सरकार राजकोषीय घाटे के खिलाफ खरी उतरी है। मोदी सरकार के दौरान राजकोषीय घाटा मनमोहन सरकार की अपेक्षा 1.7 फीसदी तक कम रहा। देश का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2018-19 में जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। बीएमआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार सरकार के 7.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लक्ष्य के चलते राजकोषीय घाटे में वृद्धि होने की संभावना है।
राष्ट्रीय ऋण-
यदि राष्ट्रीय ऋण की बात करें तो मोदी सरकार की ताजा खबरों के मुताबिक राष्ट्र पर बढ़ने वाले ऋण की गति मनमोहन सरकार की अपेक्षा 3 फीसदी तक कम है। यह आंकडें यूपीए सरकार के वित्तीय वर्ष 2009-14 से की गयी तुलना के अनुसार निकलकर आये हैं। हालाँकि मोदी सरकार को इस उपलब्धि के ऐवज में 0.3 फीसदी ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ रहा है।
फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट-
नरेंद्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल के महज चार वर्षों में ही 50 फीसदी तक फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट लाने में सक्षम रही है। यह यूपीए सरकार के पाँच वर्षों के कार्यकाल से भी अधिक है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश यात्राओं के दौरान विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित करने का सार्थक प्रयास किया है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से लेकर तीसरे वर्ष तक निवेश में लगातार इजाफ़ा हुआ। हालाँकि चौथे वर्ष में एफडीआई के आंकड़ों में कुछ कमी आई है। मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 40 फीसदी तक फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट हुआ था। मोदी सरकार के लगातार बढ़ते एफडीआई आकड़ों के बाद यह कयास लगाये जा रहे हैं कि उनका कार्यकाल खत्म होते-होते इन आंकड़ों में कुछ फीसदी इजाफा और हो सकता है।
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