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अब्राहम लिंकन : कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करने वाली ‘जीवनी’

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अब्राहम थॉमस लिंकन, एक महान व्यक्तित्व जिन्होंने अमेरिका को सबसे बड़े संकट ‘गृहयुद्ध’ से उबारा तथा जिन्होंने दासप्रथा को अमेरिका की धरती से सदा के लिए ख़त्म कर दिया और जीवन के तमाम कठिनाइयों से निरंतर लड़ते हुए एक दिन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बने, का जन्म आज के ही दिन अर्थात 12 फरवरी को वर्ष 1809 में अमेरिका के केंटकी में हुआ था.

abrahim lincon

एक बोटमैन, स्टोर क्लर्क, सर्वेयर, सिपाही, वक़ील, अन्याय के विरुद्ध आम लोगों की लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता से अमेरिका के राष्ट्रपति तक की अब्राहम लिंकन की यात्रा समस्त विश्व को न सिर्फ रोमांचित करती है बल्कि प्रेरणा का मुख्य स्रोत भी बनती है. थॉमस और नैंसी लिंकन की एक छोटी सी लकड़ी की कुटिया में अब्राहम लिंकन का जन्म हुआ. माता-पिता के अशिक्षित होने और एक गरीब परिवार में जन्म होने के कारण लिंकन की शिक्षा औपचारिक रूप से न के बराबर थी. लेकिन सकारात्मक तथ्य यह था कि लिंकन को पुस्तकें पढ़ने के शौक था और यही उनके विस्तृत ज्ञान का स्रोत भी थे जिन्होंने आगे चलकर लिंकन को प्रखर वक्ता के रूप में ख्याति दिलाई. लिंकन ने मात्र 17 वर्ष की उम्र में एक नाविक की नौकरी पकड़ ली, पहले छोटी नाव और फिर बड़ी नाव. बाद में एक दूकान में क्लर्क की नौकरी की और यहीं से राजनीति की ओर रुझान हो गया.

अब्राहम लिंकन जिस मंजिल पर पहुंचे उससे अधिक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायी उनका संघर्षपूर्ण सफ़र था. जितनी बार वह सफल हुए उससे अधिक वह असफल हुए और उन्ही असफलताओं ने उन्हें शक्ति दी और अमेरिका के राष्ट्रपति की गद्दी तक पहुंचाकर विश्व का सफलतम व्यक्ति बनाया. मात्र 31 वर्ष की उम्र में व्यवसाय में भारी असफलता का सामना करना पड़ा. लगभग 32 वर्ष की उम्र में ‘स्टेट लेजिस्लेटर’ का चुनाव लड़े लेकिन वहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 33 वर्ष की उम्र में फिर से व्यवसाय में हाथ आजमाया लेकिन वहां भी हार का मुंह देखना पड़ा. अभी इन दुखों से उबर पाने के पूरा समय भी नहीं मिल पाया था कि लगभग 35 वर्ष की उम्र में लिंकन की प्रेमिका और उनकी मंगेतर की अकस्मात् मृत्यु हो गयी. यह लिंकन के जीवन का सबसे दुखद समय था. लिंकन सदमे में थे और मानसिक रूप से बहुत ज्यादा तनावग्रस्त भी.

इस दौरान लिंकन ने वकालत के माध्यम से लोगों की बहुत सहायता की. लगभग 20 वर्ष के उनके वकालत के दिनों की सच्ची कहानियां उनकी ईमानदारी और महानता की गवाही देते हैं. वह अपने ही तरह के गरीब लोगों से फीस नहीं लेते थे और अन्य से भी कम ही लेते थे. यदि कोई ज्यादा फीस दे दे तो उसे वापस भी कर दिया करते थे. एक बार लिंकन और उनके सहयोगी वकील ने एक मानसिक रोगी महिला की संपत्ति पर अवैध रूप से कब्ज़ा करने वाले व्यक्ति को अदालत से सजा दिलवाई लेकिन इसके बदले मिलने वाली फीस को लिंकन ने लेने से मना कर दिया और कहा - “ मैं खुश नहीं हूँ! वह पैसा एक बेचारी रोगी महिला का है और मैं ऐसा पैसा लेने के बजाय भूखे मरना पसंद करूँगा.” अपनी इन्ही आदतों के कारण लिंकन कभी अमीर नहीं रहे लेकिन वह एक नेकदिल इंसान थे इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. लिंकन किसी धर्म पर चर्चा नहीं करते थे और न ही किसी चर्च से सम्बंधित थे.  एक बार उनके किसी सम्बन्धी ने  उनसे उनके धार्मिक विचार के बारे में पूछा तो लिंकन ने कहा – “बहुत पहले मैं इंडियाना में एक बूढ़े आदमी से मिला जो यह कहता था ‘जब मैं कुछ अच्छा करता हूँ तो अच्छा अनुभव करता हूँ और जब बुरा करता हूँ तो बुरा अनुभव करता हूँ’. यही मेरा धर्म है’।

बाद में वर्ष 1854 में लिंकन ने फिर से राजनीती में कदम रखा. तब वह व्हिग पार्टी में थे जो बाद में ख़त्म हो गई. अपने ओजस्वी भाषणों के कारण उनकी लोकप्रियता बढती जा रही थी. उन्होंने कांग्रेस के लिए प्रचार किया. बाद में रिपब्लिकन पार्टी के नीव की ईंट बने. दो बार उन्होंने कांग्रेस के लिए चुनाव में भाग लिया लेकिन हार गए. दो बार सीनेट के लिए भी लड़े लेकिन दोनों बार हार गए. वह उपराष्ट्रपति का चुनाव भी लड़े लेकिन वहां भी हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन जीवन की इतनी कठिनाइयों का सामना करने के बाद और निरंतर हार का मुंह देखने के बाद भी अब्राहम लिंकन इन सभी कठिनाइयों और असफलताओं को मात देते हुए वर्ष 1860 में संयुक्त राज्य अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति चुने गए.

अमेरिकन गृहयुद्ध की समाप्ति और दासप्रथा का अंत जैसे उनके निर्भीक फैसलों ने न सिर्फ अमेरिका बल्कि समस्त विश्व में उनको प्रसिद्धि दिलाई लेकिन साथ ही पैदा किये कुछ शत्रु जो उनके इन फैसलों से नाखुश थे. उन्ही में से एक अभिनेता जॉन विल्केस बूथ ने 14 अप्रैल 1865 को वाशिंगटन डीसी के एक फोर्ड सिनेमाघर में अब्राहम लिंकन की गोली मार कर हत्या कर दी.