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क्लाइमेट चेंज है बाढ़  आग और प्लेग जैसी आपदाओं का कारण

देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में कहीं बाढ़ तो कहीं आग तो कहीं प्लेग जैसी महामारी फैल रही है। इन सबका प्रमुख कारण जलवायु में होने वाले बदलाव या ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जा रहा है। चलिए जानते हैं इससे संबंधित एक रिपोर्ट क्या कहती है। 

वेनिस में अत्यधिक बाढ़, ऑस्ट्रेलिया में आग और यहां तक कि चीन में प्लेग और भारत में साइक्लोन, बाढ़ और प्रदूषण के प्रकोप को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जबकि शोधकर्ताओं ने ये भी चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग आने वाली पीढ़ियों को जीवन भर बीमारी से पीड़ित कर सकती है।

वेनिस में बाढ़ - 

वेनिस ने लैगून शहर में आने वाली बाढ़ जिसे "एपोकैलिक" नाम दिया गया है, के बाद आपात-काल की स्थिति घोषित कर दी है। एपोकैलिक बाढ़ ने लैगून शहर के ऐतिहासिक बासीलीक और सदियों पुरानी इमारतों को बीते बुधवार भारी नुकसान पहुंचाया है। बाढ़ के बाद बुधवार को शहर के मेयर लुइ-गी ब्रुगनारो ने ट्विटर पर कहा कि यह जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। उन्होंने ये भी लिखा कि वेनिस अभी अपनी नीज़ (घुटनों) पर है। बाढ़ से हुई ये क्षति लाखों यूरो तक जाएगी।।

लैगून शहर पूरी तरह से उजाड़ स्थिति में हो गया है, पत्थर की नक्काशियां चकनाचूर हो गईं हैं। लैगून में पानी का ज्वार 187 सेमी (6 फीट 2 इंच) के साथ चरम पर था। 1966 में रिकॉर्ड तोड़ बाढ़ 194 सेमी सेट के बाद इस बार की बाढ़ सबसे अधिक थी, लेकिन अभी भी जल स्तर बढ़ने से पर्यटक के आने-जाने में अभी भी खतरा है।


ऑस्ट्रेलिया में आग और उत्तरी और दक्षिणी क़्वींसलैंड में सूखा -

मेयर लुइ-गी ब्रुगनारो ने ट्विटर पर ये भी लिखा कि दुनिया के दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में इस सप्ताह जंगली झाड़ियों में भयंकर आग लग गई जिसमें चार लोग मारे गए और वहां आसपास रह रहे कितने ही समुदायों को आग की लपटों से बचने के लि भागने पर मजबूर होना पड़ा।

2016 के बाद से, उत्तरी और दक्षिणी क़्वींसलैंड के साथ अंतर्देशीय न्यू साउथ वेल्स के कुछ हिस्सों में  सूखा पड़ा है। आग और सूखे के कारणों के बारे में बताते हुए मौसम विज्ञान ब्यूरो के अनुसार, गर्म समुद्री सतह के तापमान से बारिश का पैटर्न प्रभावित हो रहा है जिससे सूखा पड़ रहा है। हवा के तापमान ने भी पिछली सदी में मौसम को गर्म किया है, जिससे सूखे और आग का वेग बढ़ गया है। 


जलवायु परिवर्तन पर हो रही है जमकर राजनीति - 

जलवायु परिवर्तन और एक्सट्रीम मौसम की घटनाओं के बीच संबंधों के कारण ऑस्ट्रेलिया एक राजनीतिक फुटबॉल बन गया हैं। अपने तर्क देते हुए और सरकार का समर्थन करने वाला कोयला-उद्योग उत्सर्जन को काटने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए तर्क देता है कि मजबूत पर्यावरणीय कार्रवाई से उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। उनका कहना है कि यह देश को अपने प्रशांत द्वीप पड़ोसियों के खिलाफ खड़ा करता है जो विशेष रूप से गर्म तापमान और बढ़ते समुद्रों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।


अमेरिकी राष्ट्रपति और ब्राजील के राष्ट्रपति ने लिया ये फैसला-

वैश्विक रूप से प्रभावी कार्रवाई के बारे में चिंता बढ़ गई है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय पेरिस समझौते को छोड़ दिया और पर्यावरण संरक्षण को खत्म करने के लिए कदम उठाए। ट्रम्प और ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलोनारो दुनिया के एकमात्र नेताओं में से हैं, जिन्‍होंने सार्वजनिक रूप से जलवायु परिवर्तन के विज्ञान पर सवाल उठाते हैं। 

अपने देशों में आग के विनाशकारी होने के बावजूद – कैलिफ़ोर्निया और अमेज़न बेनिन में - वैश्विक पर्यावरण पर कम से कम पर्यावरणविदों को दोष देते हैं।

बीजिंग में प्लेग – 

एक तरफ राजनेताओं का तर्क है, वहीं दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन का लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव के बारे में चिंता बढ़ रही है।

बीजिंग में इस सप्ताह में दो प्लेग के मामलों की पुष्टि होने के बाद, चीन में स्वास्थ्य अधिकारियों ने न्यूमोनिक प्लेग के दुर्लभ प्रकोप की सूचना दी है।


राज्य के मीडिया ने कहा कि इनर मंगोलिया प्रांत में दोनों संक्रमित थे, जहां कृंतक आबादी ने जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार सूखे के बाद नाटकीय रूप से विस्तार किया है। पिछली गर्मियों में नीदरलैंड का एक हिस्सा "रैड प्लेग" से प्रभावित था।

भारत में बाढ़ और वायु प्रदूषण –

बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से भारत भी अछूता नहीं है। केरल जैसे राज्य बाढ़ के कारण तबाह हो रहे हैं। वहीं महाराष्ट्र में साइक्लोन के कारण अलर्ट जारी किए गए। लोग फ्लू से पीड़ित‍त हो रहे हैं। वहीं भारत की राजधानी दिल्‍ली एनसीआर वायु प्रदूषण से गुज़र रही है। इससे लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। लोगों को सांस संबंध बीमारियों जैसे दमा, निमोनिया, एलर्जी के अलावा कई गंभीर बीमारियाँ हो रही हैं। 

स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है जलवायु परिवर्तन –

लांसेट मेडिकल जर्नल ने इस सप्ताह एक अध्ययन प्रकाशित किया जिसमें कहा गया कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही एक्सट्रीम मौसम की घटनाओं की संख्या में वृद्धि और वायु प्रदूषण को बढ़ाकर लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है।

पूरी पीढ़ी हो सकती है बीमार-

शोधकर्ताओं ने कहा कि एक वॉर्मर वर्ल्ड में भोजन की कमी, संक्रामक रोग, बाढ़ और अत्यधिक गर्मी का जोखिम होता है। अगर कुछ नहीं किया जाता है, तो प्रभाव पूरे जीवन में बीमारी और बीमारी के साथ एक पूरी पीढ़ी को बीमार कर सकता है।

बच्चों पर पड़ेगा असर-

स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन अध्ययन पर लैंसेट काउंटडाउन का नेतृत्व करने वाले निक वाट्स ने कहा कि बच्चे विशेष रूप से बदलते जलवायु के स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति संवेदनशील होते हैं। उनके शरीर और प्रतिरक्षा प्रणाली अभी भी विकसित हो रहे होते हैं, जिससे उन्हें रोग और पर्यावरण प्रदूषकों के लिए अतिसंवेदनशील होना चाहिए। निक वाट्स ने चेतावनी दी कि बचपन में स्वास्थ्य क्षति लगातार और व्यापक है जिसके आजीवन परिणाम बच्चों को भुगतने पड़ सकते हैं।

निक वाट्स ने लंदन ब्रीफिंग में कहा कि सभी देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती की तत्काल कार्रवाई के बिना, भलाई और जीवन प्रत्याशी में लाभ से समझौता किया जाएगा और एक पूरी पीढ़ी के स्वास्थ्य को जलवायु परिवर्तन नुकसान पहुँचाएगा।